Thursday, December 29, 2011


छूट चुकी है रेल

जा चुके है सब और वही खामोशी छायी है,

पसरा है हर ओर सन्नाटा, तन्हाई मुस्कुराई है,

छूट चुकी है रेल ,

चंद लम्हों की तो बात थी,

क्या रौनक थी यहॉं,

जैसे सजी कोई महफिल खास थी,

अजनबी थे चेहरे सारे,

फिर भी उनसे मुलाक़ात थी,

भेजी थी किसी ने अपनाइयत,

सलाम मे वो क्या बात थी,

एक पल थे आप जैसे क़ौसर,

अब बची अकेली रात थी,

चलो अब लौट चलें यहॉं से,

छूट चुकी है रेल

ये अब गुज़री बात थी,

उङते काग़ज़, करते बयान्‍,

इनकी भी किसी से

दो पल पहले मुलाक़ात थी,

बढ़ चले क़दम,

कनारे उन पटरियों

कहानी जिनके रोज़ ये साथ थी,

फिर आएगी दूजी रेल,

फिर चीरेगी ये सन्नाटा

जैसे जिन्दगी से फिर मुलाक़ात थी,

फिर लौटेंगे और,

भारी क़दमों से,जैसे

कोई गहरी सी बात थी,

छूट चुकी है रेल,

अब सिर्फ काली स्याहा रात थी |

                                 _साभार