Saturday, July 20, 2013

दिल्ली एक अनुभव

अब तक दिल्ली के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। उन्ही सुने सुनाए वाक्यांशो के आधार पर मैंने अपने दिलों दिमाग में दिल्ली की एक इमेज़ बना ली थी जिसमें साफ-सुथरी और चैड़ी-चैड़ी रोडों पर चमचमाती बड़ी-बड़ी गाडि़यां, उंची उंची इमारतें, और विदेशी पर्यटक और और माॅर्डन लड़के-लड़कियां शामिल थे।
होश संभालने के बाद जब मैंने पहली बार जब नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के बाहर कदम रखा तो एकबारगी लगा कि जो तस्वीर मैंने अपने जेहन में बसा रखी थी यह एकदम उसके उलट है। लेकिन चार फर्लांग आगे चलते ही मेट्रो स्टेशन के अंदर पहुंच कर यह मिथ्य झूठा साबित होने लगा। लेकिन नेहरु प्लेस जैसे सुप्रसिद्ध आई.टी. मार्केट के परिसर में फैली गंदगी न जाने क्या संदेश देना चाह रही थी। और दिलशाद गार्डेन के निकट सीमापुरी के इलाके की हालत देखें तो खुद को देल्ही एन.सी.आर. में खड़े होने पर शक पैदा हो जाएगा। खैर जो भी हो, पूरे भारत का समागम भी तो दिल्ली में ही है आखिर राजधानी जो ठहरी। लम्बी चैड़ी रोड़ों पर दिल्ली परिवहन की बेहतर बस सर्विस और बेहद तेज मेट्रो रेलगाड़ी वाकई काबिले तारीफ है। दिल्ली की सड़कों पर कई लोग तो बेहद सभ्य और परोपकारी दिखे लेकिन कुछ की हैवानियत भरी निगाहें किसी भी इज़्जत दार लड़की को असहज महसूस कराने के लिए काफी थीं। संयोग वश मेरा रोहिणी इलाके से भी गुजरना हुआ, जो कि पिछले साल हुए रेप कांड से चर्चा-ए-आम हो गया था।
    डी.एल.एफ. जैसे बिल्डरों की इमारतों में जाकर डेवलप्ड देल्ही की चकाचैंध स्पष्ट नज़र आती है। घूमना तो और भी कई जगह चाहता था लेकिन समय के अभाव के कारण इस आॅफिशियल ट्र्पि को टूरिस्ट ट्र्पि में नहीं बदल सका। इंडि़या गेट सरीखे ऐतिहासिक स्थलों को काफी दूर से ही बाॅय-बाॅय कर दिया। अगर ईश्वर ने मौका दिया तो जल्द ही दोबारा जा कर रेड फोर्ट, इंडि़या गेट, और अन्य तमाम जगहों को बेहद नजदीकी से जानना चाहूंगा। कुल मिला कर देल्ही एन.सी.आर. ने एक मिला जुला अनुभव प्रदान किया।