Thursday, November 6, 2014

कमरे से बाहर आना होगा कानून को


पिछले दिनों ईरान में एक 26 वर्षीय युवती रेहाना जब्बारी को एक अदालत के आदेश पर फांसी पर लटका दिया जाता है। उसका गुनाह मात्र इतना था कि उम्र के 19वें पड़ाव पर उसने बलात्कार का प्रयास करने वाले एक शख्स को चाकू घोंप कर मौत के घाट उतार दिया था। वह शख्स मुर्तजा अब्दोआली  सरबंदी ईरानी खुफिया विभाग में कार्यरत था। रेहाना को खुद की आबरू की हिफाजत की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी।

ईरानी अदालत ने दुर्दांत कानून का नमूना देते हुए रेहाना को फांसी पर लटका दिया। पिछले सात सालों से इस गुनाह की सजा काट रही रेहाना की कानून ने एक न सुनी। अंतराष्ट्रीय दबावों व विश्व भर के मानवाधिकार संगठनों के तमाम प्रयासों व सोशल मीडिया पर चल रहे कैंपेनों के बावजूद भी उसको बचाया नहीं जा सका। रेहाना की फांसी रोकने के लिए मानवाधिकार संगठनों ने मोर्चा खोला जिससे कुछ समय के लिए फांसी टाल दी गई थी। हालांकि रेहाना ने अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए न कोई दलील दी बल्कि न ही उसने कोर्ट में चीखना,चिल्लाना व गिड़गिड़ाना मुनासिब समझा। शायद उसे अपने देश के न्याय पर भरोसा था। 


रेहाना की फांसी के ठीक दो दिन बाद इस्लामिक इस्टेट ने एक कुर्दिश महिला का सिर कलम कर दिया था। संयोग से उसका नाम भी रेहाना था, उसने करीब 100 आईएस आतंकियों को मार गिराया था। उसके इस गुनाह की सजा आईएस ने उसका सर कलम कर के दी।  अगर इन दोनों मामलों में देखा जाए तो आईएस और ईरान के कानून में ज्यादा कोई फर्क  नजर नहीं आता। बस फर्क इतना है कि आईएस ने सजा देने में ज्यादा वक्त नहीं लिया जबकि ईरान को सजा देने में 7 साल लग गए। सरबंदी की हत्या के जुर्म में 2007 में गिरफ्तार रेहाना जब्बारी ने जेल से अपनी मां को संबोधित एक पत्र लिखा, जिसे उसकी फांसी के एक दिन बाद जारी किया गया । पत्र में लिखी गई बातें लोगों को रह—रह कर चुभती रहेंगी। अपने जीते जी उसने  इंसाफ की जो जंग शुरू की थी, उसकी जिम्मेदारी अब कौम के कंधों पर है।


इस पूरे वाकये को याद कर 2011 में आई पाकिस्तानी फिल्म बोल की धुंधली पड़ती यादें फिर से ताजा हो गईं। इस फिल्म में  पाकिस्तानी अदालत एक ऐसी लड़की को सजा-ए-मौत देती है जो अपने पिता के गुनाहों से आजिज आकर एक दिन उनकी हत्या कर देती है। पुत्र की चाहत की कामना करे वाले उसके पिता की चौदहवीं संतान लड़के और लड़की के बीच की होती है।  जिसके जवानी के दिनों में वह उसकी हत्या कर देता है। इस फिल्म ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया था। 

लाहौर की रहने वाली लड़की जुनैब पर उसके अपने पिता को मार डालने का आरोप होता है। जुनैब ने आज तक किसी भी अदालत में कोई बयान नहीं दिया। अंत में उसका मामला पाकिस्तान के वजीर-ए-आज़म के पास पहुँचता है। यह समझ कर कि उसने आजतक उसने अपने बचाव में कुछ नहीं कहा, इसलिए वह वाकई में आरोपी है, आज़म उसकी मौत की सजा पर मुहर लगा देते हैं। पर आखिर में फांसी के फंदा चूमने से पहले उसने मीडिया के सामने अपनी कहानी सुनाने की इच्छा व्यक्त की। इस कहानी में उसने पाकिस्तानी  औरतों पर हो रहे अत्याचारों और जुल्मों की वह दर्दनाक कथा बयां की,जो कि शायद इसके पहले कभी की गई हो। वह बिना किसी मलाल के फांसी के फंदे को चूम कर हमेशा के लिए सो गई, लेकिन पूरी दुनिया को गहरी नींद से जगा गई।


इन दोनों रील और रियल लाइफ के अदालती मामलों में मुस्लिम देशों के कानून की निर्जीविता की झलक साफ दिखलाई देती है। कानून कब तक अंधा न्याय करता रहेगा। लीक से हटकर कानून को पुन: संशोधित करने की जरूरत है। समय के साथ-साथ अपराधों की किस्मों में भी बदलाव हुआ है, मगर कानून पुराने ढर्रे पर अडिग है। कानून को बदलाव के लिए अदालती कमरे से बाहर निकल वास्तविकता को अपनाना होगा। नहीं तो वह दिन ज्यादा दूर नहीं जब कानून और आईएस सरीखे संगठनों के बीच की खाई पट जाएगी। 

Monday, November 3, 2014

दावे नहीं दवा चाहिए साहेब

उत्तर प्रदेश सरकार लाख दावे कर ले, मगर प्रदेश में किसानों  की हालत जग-जाहिर है। गाहे-बगाहे किसानों के साथ अत्याचार की घटनाएं सामने आती रहती हैं।त्तर प्रदेश में किसानों की बदतरी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है पिछले दिनों एक किसान ने लोन की राशि न अदा कर पाने के कारण आत्महत्या कर ली। छह बीघे जमीन के मालिक अशोक कुमार ने करीब सात साल पहले किसान क्रेडिट कार्ड स्कीम के तहत बैंक से 50 हजार का लोन लिया था। न चुका पाने की हालत में जो बाद में बढ़ कर 95 हजार का हो गया। इसी तरह अशोक ने अन्य जगहों से भी लोन ले रखा था। लेकिन चुकाने में असमर्थ होने के कारण उसने मौत को गले लगाना ज्यादा मुनासिब समझा। इसी तरह कुछ दिनों पहले एक और मामला सामने आया था जिसमें 28 बीघे जमीन के मालिक गन्ना किसान राहुल कर्ज का बोझ नहीं सहन कर सका और मौत को गले लगा लिया। आकड़े उठाकर देखें तो किसानों की बदहाली को बयां करने वाली ऐसी अनेकों घटनाएं मिल जाएगी। जिसमे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की पीड़ा किसी से नहीं छुपी है। अगर फिर भी राज्य सरकार किसानों की बहाली का दावा कर रही है तो यह समझ से परे है।
आलम यह है कि सरकार योजनाएं बनाती है और धरा पर आते-आते इन योजनाओं की दम निकल जाती है। सारी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है। असल में योजनाए किसानों के लिए नहीं बल्कि सरकार से किसान के बीच बैठे माफियाओं के लिए बनती हैं। प्रदेश में अन्य राज्यों की अपेक्षा पर्याप्त कृषि भूमि होने के बावजूद भी यहां की सूरत बदहाल है। बड़ी-बड़ी महत्चकांछी योजनाएं बन कर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है। सरकार ने सिंचाई संसाधनों की दुरस्तगी के लिए समर्सिबल बोरिंग के लिए अनुदान की व्यवस्था शुरू की थी। इस योजना का लाभ लेने के लिए किसानों को अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। जिसमें अनुदान से मिलने वाला आधा धन भ्रष्टाचार के नामे हो जाता है। बोरिंग के बाद बिजली कनेक्श मिल जाना भी बड़े भाग्य की बात होती है। स्थान के मुताबिक 1 लाख रुपए से लेकर 3 लाख तक की घूस देने के बावजूद भी किसानों को अधिकारियों के नखरे सहने पड़ते है।

भ्रष्टाचारगी का आलम यह है कि किसानों को बीज खरीदने से लेकर गल्ला बेंचने तक हर जगह भ्रष्टाचार का शिकार होना पड़ता है। उन्नत बीज उपलब्ध कराने वाली सहकारी समितियां तय कीमत से डेढ़ से दो गुना ज्यादा कीमत वसूलती है। यही हाल उर्वरकों में भी है। नहर, बम्बा आदि में समय से पानी न आने पर किसानों को मंहगी दरों पर निजी ट्यूबवेल से सिंचाई करवानी पड़ती है। खून-पसीने की मेहनत के बााद जब फसल लहलहा कर होती है तो बाजार भाव देखकर किसानों का चेहरा खिलने के पहले ही मुरझा जाता। वहीं किसानों से समर्थन मूल्य पर गल्ला खरीदने का दावा करने वाली सरकार द्वारा निर्धारित सहकारी समितियां अनाज खरीदने से मना कर देती हैं। अगर खरीदती भी हैं तो किसानों को अपनी बारी का इंतजार करते-करते तीन-तीन दिन तक क्रय केंद्र के बाहर धूप-पानी में डेरा डाल कर पड़े रहना होता है। इन सबके बावजूद भी अगर गल्ला बिक गया तो भुगतान के समय निश्चित कोई न कोई बाधा या कम भुगतान करने की शिकायतें आम हैं। वहीं गन्ना किसानों के हालात पर चर्चा करें तो मौजूदा गणना के मुताबिक यूपी की चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का करीब 5000 करोड़ का बकाया है।

Sunday, November 2, 2014

श्रृद्धा पर भारी रसूख

प्रभु के दरबार में न कोई ऊंच-नीच होती है और न ही कोई छोटा-बड़ा होता है। ऐसा पुराणों में लिखा है और वह सिर्फ लिखा ही रहेगा। पिछले दिनों एक सज्जन ने इस बात को लेकर गहरा रोष व्यक्त किया था। उनकी बात में भी दम था और सच्चाई थी। लेकिन तब तक यह चर्चा का विषय नहीं था। लेकिन देश के सबसे धनी व्यक्ति मुकेश अंबानी और उनकी पत्नी के बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में पंहुचने के साथ इस मुद्दे ने तूल पकडऩा शुरू कर दिया।

देश-विदेश, सैकड़ो किलोमीटर से गंगा के पावन तट पर बसी पावन नगरी में भगवान काशी विश्वनाथ के दर्शन की कामना लिए चले आ रहे श्रृद्धालुओं को भगवान के दर से बिना दर्शन के ही लौटना पड़ा। 60 साल से चली आ रही आरती की परंपरा को एक झटके में टूट गई। जिसकी वजह बने मुकेश अंबानी और उनकी पत्नी नीता अंबानी। मिसेज अंबानी का जन्म दिन मनाने बनारस पहुंचे अंबानी परिवार के लिए भगवान को बेंच दिया गया। आखिर कब तक दिखावा करने वाले वीवीआईपीओं के लिए आम जनता को ठोकरें खानी पड़ेंगी। दुनिया की सारी सुख-सुविधाओं के साथ अब धर्म भी अमीरों का हो चला है।

पत्थर की मूर्ति का सौदा करते-करते आस्था भी बिकाऊ हो गई है। आलम यह है कि आपकी जेब में जितना माल, मंदिर में आपका उतना ही भौकाल। यह नजारा आम तौर हिंदू धर्म के अधिकतर मंदिरों में  देखने  को मिल जाता है। भगवान के दर पर खड़ा होकर  इंसान, इंसान से ही भगवान का सौदा कर रहा है। भगवान के रचे हुए इंसान का जमीर इतना गिर चुका होगा इसकी कल्पना भगवान ने इंसान को रचते वक्त भी नहीं की होगी।

जिस देश का प्रधनामंत्री खुद को चाय बेचने वाला बताता हो, उस देश में तो कम से ऐसी कल्पना नहीं की जा सकती। खास तौर पर मोदी के लोकसभा क्षेत्र में तो किसी ने ऐसी कल्पना भी नहीं की होगी। लेकिन कल्पना और हकीकत इस बार एक दूसरे के विपरीत खड़े हैं। कुछ दिनों पहले मीडिया में एक खबर चली थी कि एक युवक को पासपोर्ट ऑफिस से परेशान किए जाने पर उसने मोदी को चिट्ठी लिखी थी। मोदी ने इस पर तुर्त कार्यवाई की थी, और युवक को अगले एक हफ्ते के अंदर ही पासपोर्ट जारी कर दिया गया था। तब ऐसा लगा मानो अच्छे दिन सच में आ गए हैं। लेकिन अंबानी के लिए साधुओं-श्रृद्धालुओं को मंदिर परिसर से भगा देना कहां से अच्छे दिनों की ओर संकेत करता है। जाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी तक भी यह बात पंहुंची होगी। अब देखना यह है कि मोदी क्या कार्यवाई करते हैं? या यूं ही अमीरों के हाथों सत्ता का सौदा करते रहेंगे।