Monday, April 6, 2015

क्यों कि तुम स्त्री हो...

डीएनए में 6 अप्रैल 2015 को प्रकाशित
7 अप्रैल 2015 प्रभात खबर,पटना

Saturday, April 4, 2015

क्यों कि तुम स्त्री हो...


मैं पुरुष हूं, तुम स्त्री हो और
स्त्रियों की तरह रहो। तुम्हारे चारो तरफ लक्ष्मण रेखा खिंची हुई है, उसके अंदर रहो।  भारत पुरुष प्रधान देश है। मुझे नहीं अच्छा लगता कि कोई स्त्री मुझसे ज्यादा काबिल बने, या फिर उसके मामलों में दखलंदाजी करे। तुम सदियों से चाहरदिवारी के पीछे कैद एक नौकरानी की तरह रहती आई हो और उसी तरह रहो। तुम मेरे लिए एक वस्तु की तरह हो वस्तुत: बनने की कोशिश भी न करो।   

तुम घर में काम करने के लिए बनी हो। तुम बच्चे पैदा करने के लिए बनी हो। तुम पुरुषों को सुख देने के लिए बनी हो। तुम्हे न बोलने का हक है। न खुलकर हंसने का और न ही खुलकर रोने का। तुम वही करोगी जो मैं तय करूंगा। तुम वही पहनोगी जो मैं चाहूंगा। तुम्हे अपनी मर्जी चलाने का कोई अधिकार नहीं है। आंसू बहाना तुम्हारी किस्मत का सच है। क्यों कि तुम स्त्री हो और मैं पुरुष हूं। 

तुम्हारे शरीर के एक-एक अंग के बारे में, तुम्हारी हर एक हरकत के बारे में फैसला करने का अधिकार सिर्फ मेरे पास है। मैं कभी भी कहीं भी जा सकता हूं बिना तुमसे बताए। लेकिन तुम्हे कहां जाना है और क्या करना है इसका फैसला मैं करूंगा। क्यों कि तुम स्त्री हो और मैं पुरुष हूं।

मैं सिगरेट पियूं या शराब पियूं , गोश्त खाऊं ,तुमसे क्या मतलब। लेकिन तुम्हे क्या खाना है कब खाना है और क्यों खाना है ये मैं तय करूंगा। मैं देर रात घर लौटूं, या न लौटूं। तुमसे क्या मतलब। लेकिन तुम्हे कब सोना है कब जागना है, ये मैं तय करूंगा। क्यों कि तुम स्त्री हो और मैं पुरुष हूं।

 तुम्हे किससे शादी करनी है । क्यों करनी है। कब करनी है। यह भी मैं तय करूंगा । मैं अपने दोस्तों से आपस में क्या बात करता हूं, क्यों करता हूं, तुम्हे यह जानने का कोई हक नहीं लेकिन तुम्हे क्या बोलना है कब बोलना है और क्यों बोलना है, ये मैं तय करूंगा। क्योंकि तुम...! 

मैं दिन भर क्या करता हूं , कहां रहता हूं। तुम्हे यह जानने का कोई हक नहीं। लेकिन तुम दिनभर क्या करोगी कहां रहोगी यह भी मैं तय करूंगा। तुम चाहरदिवारी के भीतर ही अच्छी लगती हो। तुम्हारी जगह वहीं है। तुम्हे बाहर निकलने का कोई हक नहीं है। तुम मेरे लिए एक वस्तु हो। मैं तुम्हारे साथ कभी भी कुछ भी कर सकता हूं। तुम्हे डांट सकता हूं, झिकझोर सकता हूं। यहां तक कि तुम्हे पीट सकता हूं। लेकिन तुम्हे मेरे ऊपर हाथ उठाने का कोई हक नहीं है। क्यों कि तुम...! 

मैं जब चाहूं तब तुम्हारे साथ सेक्स करूं, जोर-जबरदस्ती करूं , छेडख़ानी करूं, कमेंट पास करूं, भद्दी टिप्पणियां करूं, बिस्तर पर अपनी मर्जी चलाऊं, पराई औरत संग सेक्स करूं , सब मेरी मर्जी है। मैं दो शादी करूं या चार। मैं दो पत्नियां रखूं या दो दर्जन। लेकिन तुम दो शादी नहीं कर सकती, दो पति नहीं रख सकती। दो पुरुषों के साथ सेक्स नहीं कर सकती। बिस्तर पर अपनी मर्जी नहीं चला सकती। तुम्हे कितने बच्चे पैदा करने है, क्यों करने हैं और कब करने हैं । लड़की पैदा करना है या लड़का । ये मैं तय करूंगा। क्यों कि ...! 

हां तुम स्त्री हो और स्त्री की यही परिभाषा है। हमारा समाज स्त्री को इसी नजर से देखता है। पुरूषों की मानसिकता में स्त्री इससे ज्यादा कुछ  भी नहीं है। तुम भले ही लाख वूमेन एम्पावरमेंट चिल्ला लो, लेकिन मेरी नजर में तुम्हारी परिभाषा नहीं बदलने वाली। क्यों कि ...! 

हाल ही में दीपिका पादुपकोण और वोग मैग्जीन ने वूमेन एम्पावरमेंट को इंगित करता मॉय च्वॉइस नाम का एक वीडियो जारी किया था। जिसके बाद से बुद्धिजीवियों और फेमिनिस्टों में लंबी बहस छिड़ गई है। एक ओर जहां मॉय च्वॉइस नामक इस वीडियों के साथ दीपिका की जम कर आलोचना हो रही है, वहीं कुछ लोग महिला सशक्तिकरण को लेकर वीडियो और दीपिका के सर्मथन में झंडा बुलंद कर रहे हैं। हालांकि इस वीडियो के पक्ष से ज्यादा विरोध में सुर उठे हैं। इस बात से यह फिर से साबित हो जाता है कि एक स्त्री को पुरुषों की अपेक्षा से इतर जाकर कुछ सोचने का अधिकार नहीं है। 

हालांकि सेक्सिज़म और अश्लीलता को वूमेन एम्पावरमेंट बताना मुद्दे के साथ बेईमानी होगी। मगर इस मुद्दे पर  उंगली उठाने वाले खुद अपनी गिरेबान में झांक कर देखें तो वह उतने ही नंगे नजर आएंगे जितना कि यह वीडियो औरतों को कपड़े उतारने और सेक्सिज़म को प्रेरित करता है। आखिर क्यों ऐसा होता है कि हर पुरुष राह चलती औरत के कपड़ों के भीतर झांक कर देख लेना चाहता है? क्यों खयालों ही खयालों में उसे नंगा करने की जुगत में लगा रहता है? जिस दिन पुरुष इन सवालों का जवाब तलाश लेंगे उस दिन से एक स्त्री को महिला सशक्तिकरण के लिए लड़ना नहीं पड़ेगा। आज जब स्त्रियों के लिए किसी ने दमदारी के साथ आवाज उठाई है तो हम नैतिक संस्कारों और मूल्यों का दुहाई देते फिर रहे है। क्या स्त्री होना वाकई इतना कठिन है। क्या जिंदगी के रंग मंच में स्त्री के लिए इससे बेहतर कोई और स्क्रिप्ट नहीं लिखी गई। आखिर स्त्री और पुरुष एक ही कोख से जन्में दो पहलू हैं। दोनों ईश्वर की समान कृति हैं। फिर स्त्री होना इतना कठिन क्यों है?