Sunday, March 24, 2013

‘खलनायक’ नही ‘नायक’ हूं मैं।


12 मार्च 1993, मुंबई में सिलसिलेवार 12 बम ब्लास्ट। बेहद खौफनाक मंजर, 250 से भी ज्यादा लोग मारे गए,700 से भी ज्यादा घायल हुए। इन सबसे अनजान एक फिल्म स्टार विदेश में अपनी फिल्म की शूटिंग में व्यस्त था। ब्लास्ट की खबर आग से भी तेज तरीके से फैली, फैलते-फैलते विदेश में संजय दत्त के कानों तक भी पहुंची। वह घबरा गया। उसने अपने करीबी दोस्त को फोन किया और अपने घर में रखी एक एके-56 और पिस्टल को कहीं दूर ले जाकर नष्ट करने को कहता है। दोस्त ने ठीक वैसा ही किया। 19 अप्रैल को संजय दत्त शूटिंग पूरी कर के वापस लौटते हैं और उन्हे एयरपोर्ट से ही अरेस्ट कर लिया जाता है। उन पर मुकदमा चलता है। बम ब्लास्ट के आरोपों से बरी हो जाते हैं लेकिन अवैध हथियार रखने के दोषी पाए जाते हैं और आम्र्स एक्ट के तहत उन्हे छै साल की सजा सुनाई जाती है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बाद में कम कर के पांच वर्ष सश्रम कारावास की सजा  में तब्दील कर देता है।
मंबई हमले के 20 साल बाद 21 मार्च 2103 को जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आता है, अचानक से फिल्मी दुनिया में हलचल मच जाती है। बालीवुड थम जाता है। संजय के प्रशंसक निराश हो जाते हैं। भारत के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार होता है जब लोग किसी आतंकवादी हमले या किसी आतंकी संगठन से जाने-अनजाने ताल्लुक रखने वाले शख्स के प्रति इतनी नरमी बरतते हैं। भारत की जनता का एक बड़ा वर्ग आज संजय दत्त के साथ खड़ा है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि संजय ने खुद यह बात कबूल की है कि उन्हे हथियार खुद अबू सलेम और याकूब मेमन देने आए थे। बतौर संजय दत्त का कहना है कि उन्हे यह हथियार धोखे से दिए गए। उनका कहना है कि अयोध्या राम मंदिर निर्माण मसले में जब हिंसा भड़की थी तब उनके पिता कांग्रेस एम.पी. और मिनिस्टर सुनील दत्त की कार पर कातिलाना हमला हुआ था और लगातार धमकियां भी मिल रही थीं। इस वजह से वह खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे थे और बतौर संजय दत्त उन्होने अपने परिवार की सुरक्षा के लिए पुलिस सिक्योरिटी की मांग भी की थी जो कि उन्हे मुहैया नहीं कराई गई थी। इस वजह से वे काफी निराश हो गए थे और अपनी परेशानी को फिल्म निर्माता निर्देशक समीर हिंगोरा से बताई। हिंगोरा ने ही उन्हे अपने पास हथियार रखने की सलाह दी और मुहैया भी कराए। कहा जाता है कि समीर हिंगोरा के अंडरवल्र्ड के लोगो से संबंध थे। 
बालीवुड का अंडरवल्र्ड से रिश्ता बहुत पुराना रहा है। समय समय पर कई नाम सामने आते रहे हैं पर वे लोग अपनी लंबी पहुंच और बड़े ओहदे के कारण कानून की पकड़ से बचते रहे हैं। अक्सर बड़ी हस्तियां अपने पाॅवर का इस्तेमाल कर बचते रहे हैं। आज संजय दत्त को होने पर एक बड़ा जनसमूह, बड़ी-बड़ी बालीवुड हस्तियां और दिग्गज राजनेता भी उनकी सजा माफ करने के पक्ष में हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और वर्तमान में भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने भी महाराष्ट्र के राज्यपाल को पत्र लिखकर सजा माफ करने की अपील की है। काटजू के ऐसा करने पर दत्त के पूर्व वकील महेश जेठमलानी ने गहरी आपत्ति जताई है। वहीं समाज सेवी अन्ना हजारे का कहना है कि संजय दत्त को सुप्रीम कोर्ट ने बहुत कम सजा दी है। और उन्हे सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करना चाहिए।
वास्तव मंे क्या संजय दत्त को सजा देने में सतर्कता बरती गई? अगर यहां पर उनकी जगह कोई साधरण आदमी होत तो उसे बतौर आतंकवादी कह कर फंसाना मुंबई पुलिस के लिए और आसान हो जाता। और यह मुनासिब था कि उसे फांसी या उम्रकैद की सजा हो सकती थी। इस मामले में दत्त 18 माह कारावास की सजा पहले ही काट चुके हैं,लेकिन इस बीस साल के दौरान वह न जाने कितने बार घुट-घुट कर मरे होंगे। आज जब संजय का कैरियर बुलंदियों पर है तब इस तरह की सजा बेहद दुखदायी है अगर इस बार दत्त जेल गए तो साढे़ तीन साल बाद उनके लिए फिल्मी दुनिया में फिर से पैर टिका पाना आसान नही होगा। इन साढ़े तीन साल के अंतराल में उनके बच्चे बिना बाप के साये में होश संभाल लेंगे और क्या बाद में जब संजय घर आएंगे तो क्या वे अपने बच्चों से नजरे मिला पाएंगे? पहले ही एक बार भरे पूरे परिवार के बिखरने का दंश झेल चुके संजू बाबा ने बड़ी मुश्किल से ही दोबारा पूरी निष्ठा, मेहनत, और नेक कार्यों के बलबूते एक बार फिर भरे-पूरे बगीचे सरीखा खुशहाल परिवार तैयार किया था। अब दोबारा उसे बिखरते देखने का दंश शायद ही इस पूरी कायनात में कोई झेल पाए।
क्या उन्हे नादानी मंे हुई गलती की सजा की इतनी भारी भरकम कीमत अदा करनी होगी? क्या उन्हे अब तक काटी गई सजा पर ही माफ नही किया जा सकता। जाने अनजाने नायक से खलनायक बने संजू बाबा अपली खलनायकी की छवि से उबरते हुए आज एक बेहतरीन नायक के तौर पर दुनिया के सामने हैं। इसी तरह एच.आई.वी से ग्रसित समीर हिंगोरा को अदालत अब तक काटी गई सजा पर ही छोड़ दिया। भारत एक लोकतांत्रिक देश है, कानून लोकतंत्र से है और लोकतंत्र कानून से है। यहां पर कानून ने अपना फैसला सुना दिया है लेकिन लोकतंत्र को यह मंजूर नही है। लोकतंत्र ने जब संजू बाबा को माफ करने का फैसला ले लिया है तो कानून को भी लोकतंत्र के इ़च्छा को संज्ञान मे लेते हुए अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। अब खुद संजय दत्त के पास यही दो शब्द बचे होंगे ‘‘खलनायक नहीं नायक हंू मैं’’ ।

प्रशांत सिंह
कानपुर
9455879256

Wednesday, March 6, 2013

राहुल गांधी-वादों के शहजादे


राहुल गांधी नामक व्यक्ति से तो आप भली भांति परिचित ही होंगे। यह एक ऐसा व्यक्ति है जो भारत सरकार के सबसे शक्तिशाली लोगों में दूसरे नम्बर का दर्जा रखता हो। जी हां हम उसी राहुल गांधी की बात कर रहे हैं जो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के इकलौते बेटे है और उनके प्रशंसकों की माने तो आने वाले 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री पद के सबसे तगड़े दावेदार।
अभी हाल में ही राहुल को कांग्रेस पार्टी का नेशनल वाॅइस प्रेसीडेंट बनाया गया है। पिछले एक दशक में मनमोहन सिंह की नाकामी को देखते हुए यह कह पाना बड़ा ही मुश्किल है कि कांग्रेस 2014 का चुनाव मनमोहन के भरोसे लडे़गी। ऐसे में कांग्रेस राहुल गांधी को पी. एम. पद के लिए प्रोजेक्ट कर रही है। कांगे्रस को उम्मीद है कि शायद वह ही उसकी डूबती नैया को पार लगा दें।
भा. ज. पा. की ओर से पी.एम. पद के सबसे तगड़े उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को राहुल गांधी का सबसे कड़ा प्रतिस्पर्धी माना जा रहा है। दोनों के बीच में जमीन आसमान का अंतर है। जहां राहुल राजनीति में पैराशूट से उतारे गए नेता हैं वहीं मोदी एक-एक सीढ़ी चढ़ कर बुलंदियों पर पहुंचने वाले नेता हैं।
पिछले साल यू.पी. के विधान सभा चुनाव में राहुल गांधी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी फिर भी वे यू.पी. में अपनी सरकार बनाना तो दूर सम्मान जनक सीटें भी नहीं दिला पाए। उत्तर प्रदेश की कुल 403 सीटों में कांग्रेस मात्र 28 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी। वहीं दूसरी ओर मोदी ने गुजरात विधानसभा चुनाव में अकेले अपनी दम पर लगातार तीसरी बार अपनी सरकार पूर्ण बहुमत से बनाने में कामयाब हो गए। मोदी की पार्टी को गुजरात की कुल 182 में से 116 सीटें प्राप्त हुई।
राहुल गांधी वह इंसान हैं जो देश की भोली भाली और गरीब जनता को अपना निशाना बनाते हैं। उनसे झूठे वादे करते हैं। दलित जनों के घर खाना खाने का स्वांग रचते हैं। अपने विदेशी दोस्तों के सामने देश की भोली भाली जनता का मजाक उड़ाते हैं उसे मूर्ख  करार देते हैं। यू.पी.-बिहार की जनता को भिखमंगा बताते हैं। और चुनावों के समय बड़े-बड़े वादे करते हैं लेकिन पूरे कभी नहीं करते है।
और आपकी सरकार के अनुसार रू.26/व्यक्ति गांव और रू.32/व्यक्ति शहर में कमाने वाला गरीब नहीं हो सकता। यानि कि जिंदा रहने के लिए इतने रूपए काफी हैं। फाइव स्टार होटलों में खाने वाले और महलनुमा बड़े-बडे़ बंगलों में रहने वाले और बड़ी-बड़ी कारों में चलने वाले लागों का इतना छोटा दिल देखकर वाकई शर्म आती है। अरे भाई राहुल साहब सिर्फ गरीब दलितों के घर खाना खाने से आप गरीबों का दर्द नहीं समझोगे अगर वास्तव में आपको गरीबी की परिभाषा समझनी है तो 32 रूपए में गुजारा कर के दिखाइए।
और एक बार फिर जब लोक सभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं राहुल के वादों की लिस्ट में इज़ाफा हो रहा है। राहुल कह रहे हैं कि अगर उन्हे अगली बार मौका मिला तो फलां-फलां कार्य वह अगली सरकार में पूरा करेंगे। अरे भई अगली सरकार का इंतजार क्यों है पिछले 10 वर्षों से आप ही की पार्टी सरकार चला रही है। और आपके प्रधानमंत्री की क्या मजाल जो वह आप की बात काटंे क्यों कि आप तो ठहरे पार्टी के युवराज। फिर अभी तक आपने जनता के लिए कुछ नहीं सोचा खैर अभी भी आम चुनावों में लगभग एक साल का समय है फिर अभी ही कुछ साबित कर के दिखा दीजिए।
वैसे जनता का मिजाज देखकर यह साफ है कि वह आपकी पार्टी को दोबारा मौका तो दूर आॅप्शन तक के लिए मुनासिब नहीं समझेगी। अब यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि राहुल के वादों की खिवैया कांग्रेस की नैया पार लगा पाती है कि नहीं।