Friday, June 14, 2013

आलोचकों का सम्मान करें

          कहते हैं कि आलोचक तो सभी के होते हैं, चाहे वह अच्छा इंसान हो या बुरा। जो आलोचनाओं से डर गया वो समझो वो मर गया। वैसे आलोचनाएं किसी व्यक्ति विशेष का चरित्र नही बल्कि आलोचक की मानसिकता को दर्शाती हैं।
किसी मशहूर व्यक्ति ने सच ही कहा है कि जब आपके आलोचक पैदा होने लगे, लोग आपसे जलन और ईष्र्या महसूस करने लगें तब आप समझ जाइएगा कि आप सही दिशा में जा रहें हैं।
आलोचनाओं से भय से डर कर बैठने वाला व्यक्ति कभी भी तरक्की नहीं कर सकता। आलोचनाओं को अपनी कमजोरी नहीं बल्कि अपनी ताकत बनाइए। आलोचना करना अति आसान काम है, एक आलोचक किसी व्यक्ति की आलोचना करते समय अपनी सोच का दर्शाता है। आलोचनाएं उसका अपना निजी अनुभव होता है न कि पूरी कायनात की सोच।
यह जरुरी नहीं कि एक व्यक्ति सबके लिए एक जैसा ही हो। सबका अपना अपना नज़रिया होता है सबके अपने अपने उद्देश्य होतो हैं। कोई भी कभी भी आपका आलोचक बन सकता है कभी कभार तो आपके आलोचकों में आपके मित्र भी हो सकते है जिन्हें आप बेहद निजी मानते हुए उनसे आपने कभी भी इस तरह की उम्मीद न की हो।
खैर जमाना कलयुगी है आपके सामने मीठा बोलने बाले प्रशंसक भी कभी कभार आपकी पीठ पीछे खंजर घोपने को आतुर रहते हैं। भला ऐसे प्रशंसकों का भी क्या फायदा। इनसे लाख भले तो खुले आम आलोचना करने व्यक्ति हैं, कम से कम वे ललकार कर तो लड़ते हैं। आप सबसे अनुरोध है कि आप अपने आलोचकों का सम्मान करें, क्यो कि वे आपको सफलता की ओर बढ़ने के लिए उकसाते रहते हैं।
यूं तो आलोचक सचिन तेंदुलकर और अमिताभ बच्चन के भी हैं, और कल जो वो थे आज भी वही हैं।आलोचना तो गांधी जी की भी होती है लेकिन फिर भी हम अपनी जेब में गांधी नोट रखने को मजबूर हैं। आलोचनाएं तो उनकी बहुत हुईं मगर नुकसान किसका हुआ ?
यूं तो मेरे कई आलोचक पहले भी थे लेकिन ,मित्रों आज मैं अपने पहले सर्टिफाइड़ आलोचक से रूबरू हुआ। मै उन भाई साब कोटि कोटि धन्यवाद देना चाहूंगा, खास तौर पर उनसे आमने सामने की मुलाकात पर।
मेरे ख्याल से तो आलोचनाएं सफलता की सूत्रधार हैं। दुनिया एक जंगल है और यहां अनेक तरह के प्राणी विचरण करते हैं और यह जरुरी नहीं कि आप सबकी आपेक्षओं पर खरे उतर सकें। शेर तो अकेला ही दहाड़ता रहता है और कुत्ते तो भौंकते ही रहते हैं(न चाह कर भी यह लाइन लिखने को मजबूर हूं)।
.............................................................................................................................................................................................................खैर, लिखना तो और भी कुछ चाहता लेकिन लेख में निष्पक्षपूर्ण बनाने के फेर में आगे नहीं लिख सका।
यहां पर मै कुछ लाइनें काव्य के रुप में लिख रहा हूं हो सके तो आप जरुर पढि़ए।


‘‘इस जहां को जहन्नुम बनाने के फेर में ।
किसी के बुरे हो गए,तो किसी के प्रिये हो गए।।
आसमान तो एक है ,
कोई सौ फुट पर उड़ता है।
तो कोई सौ मील पर।।
धरती तो एक है ,
कोई खरगोश चाल चलता है।
तो कोई कछुआ चाल।।
अगर किसी को ताकत का गरूर है,
तो वह उसके दिमाग का फितूर है।
क्यों कि हाथी भी चींटी के आगे मजबूर है।।’’