Wednesday, May 22, 2013

 आज यूं ही बैठे सड़क की तरफ निहार रह था , कि अचानक नज़र सड़क किनारे खडे सात-आठ बच्चों के झुण्ड़ पर पड़ी जो वहां से गुजर रही सेना की गाडि़यों से हाथ हिला कर टाटा कर रहे थे। उन गाडि़यों में बैठे जवानों में से कुछ गाडि़यों के जवान तो बच्चो के अभिवादन को स्वीकार कर रहे थे और कुछ तो उन बच्चों की तरफ निहारना भी मुनासिब नहीं समझ रहे थे। जवानों से प्रतिउत्तर पा कर बच्चों का उत्साह दोगुना हो जाता और पीछे से आने वाली दूसरी गाड़ी के जवानों से वे और जोर-शोर के साथ टाटा करते। ऐसी चटख धूप में जवानों की प्रतिक्रिया बच्चों के लिए ग्लूकाॅन-डी का काम कर रही थी। करीब दस मिनट तक सेना की गाडि़यों का काफिला गुजरता रहा और बच्चों का यही क्रम जारी रहा। यह दृश्य देख कर बचपन की स्मृतियां  आखों के सामने झूलने लगी।

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