भारत-पाक के बीच लगातार बढ़ता तनाव किसी एक के लिए नहीं बल्कि काश्मीर के लिए घातक साबित हो रहा है। बार बार वार्ताओं के विफल दौर से जूझ रहे दोनो देशों में कुशल नेतृत्व व निर्णायक क्षमता का अभाव स्पष्ट झलकता है। ६७ सालों से इन दोनों देशों के बीच सिर्फ और सिर्फ काश्मीर पिस रहा है।
जब-जब इन देशों के बीच आग भड़की है सबसे ज्यादा नुकसान सिर्फ काश्मीर का ही हुआ है। दोनों देशों के बीच भंवर में फंसे काश्मीर को लेकर शांति वार्ता सरीखी हर बात विफल ही रही है। न तो पाक अपनी कही हुई बात पर अडिग रह पाया है न तो भारत जनता से किए गए अपने वादे पर। सेना से मजबूर पाक सरकार ने हर बार भारत को धोखा दिया है। बंद कमरे में भले ही पाक ने भारत से शांति वार्ता के तहत बड़े-बड़े वादे कर लिए हों लेकिन पाकिस्तानी सेना को वह मंजूर नहीं। पाकिस्तान में लोकतंत्र महज एक रबर स्टैंप के शिवाय कुछ और नही है। सेना की तानाशाही लगातार जारी है। पाक सेना अपने रसूख में कोई कमी नहीं आने देना चाहती यही वजह है कि पाक की कथनी और करनी में जमीन आसमान का फर्क है। आजादी के बाद से इन छह दशकों के बीच में चार बड़े युद्ध और दर्जनों शांति वार्ता व समझौते इस बात की प्रमाणिकता को जाहिर करते हैं। युद्ध तो जरूर हुए लेकिन न तो भारत कुछ हासिल कर पाया न तो पाक। हालात तब भी वही थे और आज भी वही हैं। अगर आज के हिसाब से देखा जाए तो उससे भी कहीं ज्यादा बदतर।
पाक ने जब-अपना नापाक चेहरा दिखाया है तब तब मंजर बेहद खौफनाक रहा है। वह बार बार खून की होली खेलता रहा और हम अपने ही लोगों के खून की स्याह से शांति वार्ता की पटकथा लिखते रहे।
वैसे तो भारत पाक मुद्दा हमेशा ही सुर्खियों में बना रहता है लेकिन इस बार यह मुद्दा एक बार फिर उस समय गर्माया है जब अरब देश इस तरह की मुसीबतों से दो-चार हो रहे हैं। मौजूदा दौर में काश्मीर की हालत फिलिस्तान और इजराइल के बीच फंसे गाजा पट्टी से कुछ कम नही है। बंद कमरे वार्ता की खनक सीमा पर सुनाई देती है,मानों रिमोट कहीं और रिएक्शन कहीं और । अब वक्त आ गया है कठोर फैसले लेने का और उन पर अडिग रहने का। लेकिन हां फैसलों के बीच काश्मीर को दूसरी गाजा पट्टी बनने से भी रोकना होगा।
प्रशांत सिंह
9455879256
जब-जब इन देशों के बीच आग भड़की है सबसे ज्यादा नुकसान सिर्फ काश्मीर का ही हुआ है। दोनों देशों के बीच भंवर में फंसे काश्मीर को लेकर शांति वार्ता सरीखी हर बात विफल ही रही है। न तो पाक अपनी कही हुई बात पर अडिग रह पाया है न तो भारत जनता से किए गए अपने वादे पर। सेना से मजबूर पाक सरकार ने हर बार भारत को धोखा दिया है। बंद कमरे में भले ही पाक ने भारत से शांति वार्ता के तहत बड़े-बड़े वादे कर लिए हों लेकिन पाकिस्तानी सेना को वह मंजूर नहीं। पाकिस्तान में लोकतंत्र महज एक रबर स्टैंप के शिवाय कुछ और नही है। सेना की तानाशाही लगातार जारी है। पाक सेना अपने रसूख में कोई कमी नहीं आने देना चाहती यही वजह है कि पाक की कथनी और करनी में जमीन आसमान का फर्क है। आजादी के बाद से इन छह दशकों के बीच में चार बड़े युद्ध और दर्जनों शांति वार्ता व समझौते इस बात की प्रमाणिकता को जाहिर करते हैं। युद्ध तो जरूर हुए लेकिन न तो भारत कुछ हासिल कर पाया न तो पाक। हालात तब भी वही थे और आज भी वही हैं। अगर आज के हिसाब से देखा जाए तो उससे भी कहीं ज्यादा बदतर।
पाक ने जब-अपना नापाक चेहरा दिखाया है तब तब मंजर बेहद खौफनाक रहा है। वह बार बार खून की होली खेलता रहा और हम अपने ही लोगों के खून की स्याह से शांति वार्ता की पटकथा लिखते रहे।
वैसे तो भारत पाक मुद्दा हमेशा ही सुर्खियों में बना रहता है लेकिन इस बार यह मुद्दा एक बार फिर उस समय गर्माया है जब अरब देश इस तरह की मुसीबतों से दो-चार हो रहे हैं। मौजूदा दौर में काश्मीर की हालत फिलिस्तान और इजराइल के बीच फंसे गाजा पट्टी से कुछ कम नही है। बंद कमरे वार्ता की खनक सीमा पर सुनाई देती है,मानों रिमोट कहीं और रिएक्शन कहीं और । अब वक्त आ गया है कठोर फैसले लेने का और उन पर अडिग रहने का। लेकिन हां फैसलों के बीच काश्मीर को दूसरी गाजा पट्टी बनने से भी रोकना होगा।
प्रशांत सिंह
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“be honest, be kind, be honorable, work hard, and always be awesome”
ReplyDeletenice work Mr. prashant
ThanX mr suraj... Stay connected.. :)
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