Thursday, December 11, 2014

नियम-कानून नहीं मानसिकता बदलनी जरूरी है

आज से ठीक दो साल पहले 16 दिसंबर 2012 की रात की उस खौफनाक वारदात को शायद ही कोई भूला हो। चलती बस में मेडिकल की छात्रा से दुष्कर्म की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। हादसे के बाद गली मुहल्ले से लेकर संसद तक भूचाल आ गया था। महिला सुरक्षा को लेकर तमाम तरह के सवाल खड़े हुए। संसद से ही उनके समाधान भी खोज लिए गए। लेकिन उनके सड़कों पर आने की परवाह किसी को नहीं थी। लोगों ने बढ़-चढ़ कर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। ऐसा लग रहा था मानों रेप दरिंदों ने नहीं बल्कि सरकार ने किया हो। कड़ाके की सर्दी में पुलिस की लाठियों तथा पानी की बौछारों की चिंता न करते हुए हजारों की संख्या में लोग आरोपियों को सजा दिलाने दिल्ली की सड़कों पर उतरे। जगह-जगह कैंडल मार्च का अयोजन किया गया। सरकार ने प्रदर्शन कारियों की मांगों को संज्ञान में लिया। आज दो साल बाद फिर दिल्ली की सड़कों पर रेप की घटना ने तूल पकड़ा। निर्भया कांड के बाद नियम बदले, कानून बदला, सरकार बदली। और अब सवाल यह है कि लोग कितना बदले? वह लोग कितना बदले जो 2 साल पहले इंसाफ का मुखौटा पहन न्याय की मांग कर रहे थे। एक सवाल है उन सबसे जो लोग ठीक 2 साल पहले सड़कों पर पुलिस की लाठियों की परवाह न करते हुए, सड़कों पर मोमबत्ती लेकर घूम रहे थे, वह कितना बदले? क्या उन्होंने सड़क पर चलती लड़कियों/स्त्रियों को घूरना बंद कर दिया है। शाम को स्कूल-कॉलेज,कोचिंग अथवा ऑफिस से घर लौट रही लड़कियों पर फब्तियां कसना बंद कर दिया है? दिन भर शराफत का चोला पहन कर घूमने वाले लोग अंदर से कितने नंगे हैं इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि निर्भया कांड के दौरान 5 आरोपी बनाम पूरा देश था, लेकिन देश में महिलाएं अब भी सुरक्षित नहीं। घिनौनी वारदातों को अंजाम देने वाले दरिंदे आसमान से नहीं उतरते,इतर वह हम सबके बीच से ही होते हैं। इसके लिए  दोषी न सरकार है न कानून। दोषी हमारा समाज है। हम हैं। बस, टैक्सी बैन करने से कुछ नहीं होने वाला। अगर होता तो निर्भया कांड के बाद ऊबर कांड का अस्तित्व ही नहीं होता। अगर कुछ बदलना है तो हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी। यह भारतीय समाज ही है जहा पैदा होते ही बेटों को नकली तमंचा और बेटी को गुडिय़ा पकड़ाई जाती है।

No comments:

Post a Comment