Sunday, January 18, 2015

शराब पर बहकती सरकार

​पिछले दिनों ऐसी खबरें आ रहीं थी कि मध्य प्रदेश सरकार शराब से वैट हटाने जा रही है । हालांकि बाद में कैबिनेट बैठक में मंत्रियो के विरोध के बाद शिवराज सिंह चौहान ने नई आबकारी नीति द्वारा प्रस्तावित इन परिवर्तनों को ​नकार दिया। 


(13 जनवरी को कैबिनेट की बैठक से ठीक पहले लिखा गया)
ऐसी खबर हैं कि मप्र सरकार ने शराब से वैट हटा लिया है। इसका मतलब है अब प्रदेश में शराब सस्ती हो जाएगी।  शराब सस्ती मतलब नशा सस्ता। नशा सस्ता मतलब बर्बादी सस्ती। बर्बादी मतलब खुद की बर्बादी। रिश्तों की बर्बादी। समाज की बर्बादी। अंतत: देश की बर्बादी।
  एक वाकया याद आता है, तकरीबन सालभर पहले मप्र सरकार ने प्रदेश को नशा मुक्त बनाने का दावा किया था। पार्टी के नेता सार्वजनिक कार्यक्रमों में शराब की बुराई करते नहीं थकते थे। गुजरात की तर्ज पर मप्र में भी शराब बंदी जैसे कानून लाने की कवायद शुरू भी कर दी थी लेकिन अब ऐसे फरमान जारी हो चुके हैं जिनसे शराब के दाम लगातार गिरेंगे।
सरकार के नुमाइंदों ने यह तक कहा था कि प्रदेश में अब एक भी नई शराब की दुकान नहीं खुलेगी। क्या ये वही सुशासन है, जो आम जनता के बीच नशा-मुक्ति कार्यक्रम चलाने की पैरवी कर रहा था। भाजपा के राज में देसी ठेकों पर विदेशी शराब ने भी सिर चढऩे की पूरी तैयारी कर ली थी। लेकिन विरोध के बाद भी देसी ठेकों पर फिलहाल विदेशी शराब के प्रवेश को ग्रहण लग गया है। बढ़ती नशाखोरी के इस दौर में भाजपा ने केंद्र में कुर्सी संभालते ही शराब और तंबाकू उत्पादों पर नकेल कसने की घोषणाएं की गईं थीं।
हालात आज  इसके ठीक उलट हैं। सरकार कदम दर कदम बहक रही है। भाजपा शासित राज्य में ही शराब की कीमतों में भारी गिरावट मतलब नशे की लत को बल देना है। इसके कुछ दिन पहले ही सिगरेट से भी वैट हटा लिया था। इस निर्णय के पीछे तर्क दिया गया है कि शराब की बिक्री बढऩे से प्रदेश सरकार को तकरीबन ६०० करोड़ रुपए सालाना की अतिरिक्त आय होगी। इससे भले ही सरकारी खजाने तंदरुस्त होंगे, लेकिन सामाजिक क्षति की भरपाई कौन करेगा? इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा? सरकार होगी या शराब होगी?
भारत में नशा एक बड़ी समस्या बन चुका है। देश का एक बड़ा युवा वर्ग नशे की गिरफ्त में है। युवाओं  के भरोसे भारत के सुनहरे भविष्य का सपना देखने वाली सरकारें भविष्य में किस भारत की कल्पना कर रही हैं? यह अकाट्य सत्य है कि नशा विनाश का कारण बनता है। यह हम जानते हैं, सरकार जानती है। फिर भी इस तरह शराब से टैक्स हटाकर नशाखोरी की लत को बढ़ावा देना विडंबना ही कहा जाएगा।

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